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शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

'मैं आतंकवादी नहीं हूँ '- भगत सिंह ।


-28 सितंबर 1907 का दिन था,भगत सिंह का बचपन का नाम तय हुआ,'भागां वाला' अर्थ कुछ यूँ था- अच्छे भाग्य वाला।
खुद का तो पता नहीं लेकिन देश का भाग्य ज़रूर सुनहरा होना तय था। बचपन से ही भगत सिंह अपने दादाजी,अपने चाचा और पिता को देखते आ रहे थे,जिस से भगत सिंह क्रांतिकारी सोच के धनी थे । 13 अप्रैल 1919 को जब जलियांवाला बाग में हत्याकांड हुआ तो भगत सिंह के बाल मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। अब लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने 1920 में भगत सिंह महात्‍मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लेने पहुँच गए।
अब तक भगत सिंह गांधीजी के आन्दोलन का हिस्सा होने के साथ साथ भारतीय नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्‍य थे। लेकिन जब 1921 में चौरा-चौरी हत्‍याकांड के बाद गांधीजी ने किसानों का साथ नहीं दिया तो भगत सिंह पर उसका प्रभाव पड़ा और उन्होने उसके बाद चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्‍व में गठित हुई गदर दल के हिस्‍सा बन गए भगत सिंह। घर छोड़ते हुए एक पत्र भगत सिंह ने अपने पिता जी को लिखा था,आपको पढ़ना चाहिए-
1923 मे लिखा हुआ ये पत्र भगत सिंह की सोच को दिखाता है।
पूज्य पिता जी,
नमस्ते।

मेरी जिन्दगी मकसदे आला यानी आज़ादी-ए-हिन्द के असूल के लिए वक्फ हो चुकी है। इसलिए मेरी जिन्दगी में आराम और दुनियावी खाहशात बायसे कशिश नहीं हैं।
आपको याद होगा कि जब मैं छोटा था, तो बापू जी ने मेरे यज्ञोपवीत के वक्त ऐलान किया था कि मुझे खिदमते वतन के लिए वक्फ कर दिया गया है। लिहाजा मैं उस वक्त की प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हूँ।
उम्मीद है आप मुझे माफ फरमाएँगे।
आपका ताबेदार,
भगतसिंह।

इस समय भगत सिंह अपना घर छोड़कर कानपुर अपने एक क्राँतिकारी मित्र के पास पहुंच गए थे।
 कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी के पास पहुँचकर ‘प्रताप’ में काम शुरू कर दिया। वहीं बी. के. दत्त, शिव वर्मा, विजयकुमार सिन्हा जैसे क्रान्तिकारी साथियों से मुलाकात हुई। उनका कानपुर पहुँचना क्रांति के रास्ते पर एक बड़ा कदम बना।
अब उन्‍होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। 9 अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया गया। यह घटना काकोरी कांड नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। इस घटना को अंजाम भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और प्रमुख क्रांतिकारियों ने साथ मिलकर अंजाम दिया था।
भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशीरल विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान मनुष्य थे। उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगतसिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने 'अकाली' और 'कीर्ति' दो अखबारों का संपादन भी किया।
भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अफसर जेपी सांडर्स को मारा था। इसमें चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी।
आगे क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके । वे वहीं खड़े रहे लेकिन भगत सिंह चाहते तो भाग भी सकते थे पर उन्होंने पहले ही सोच रखा था कि उन्हें दण्ड स्वीकार है चाहें वह फाँसी ही क्यों न हो; अतः उन्होंने भागने से मना कर दिया। उस समय वे दोनों खाकी कमीज़ तथा निकर पहने हुए थे। बम फटने के बाद उन्होंने "इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद!" का नारा लगाया और अपने साथ लाये हुए पर्चे हवा में उछाल दिये। इसके कुछ ही देर बाद पुलिस आ गयी और दोनों को ग़िरफ़्तार कर लिया गया।
भगत सिंह ने 19 अक्टूबर 1929 को विधार्थियों के लिये एक पत्र लिखा-
इस समय हम नौजवानों से यह नहीं कह सकते कि वे बम और पिस्तौल उठाएँ। आज विद्यार्थियों के सामने इससे भी अधिक महत्वपूर्ण काम है। आनेवाले लाहौर अधिवेशन में कांग्रे़स देश की आज़ादी की लड़ाई के लिए जबरदस्त लड़ाई की घोषणा करने वाली है। राष्ट्रीय इतिहास के इन कठिन क्षणों में नौजवानों के कन्धों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ पड़ेगी। यह सच है कि स्वतन्त्रता के इस युद्ध में अग्रिम मोर्चों पर विद्यार्थियों ने मौत से टक्कर ली है। क्या परीक्षा की इस घड़ी में वे उसी प्रकार की दृढ़ता और आत्मविश्वास का परिचय देने से हिचकिचाएँगे? नौजवानों को क्रांति का यह सन्देश देश के कोने-कोने में पहुँचाना है, फैक्टरी कारखानों के क्षेत्रों में, गंदी बस्तियों और गाँवों की जर्जर झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में इस क्रांति की अलख जगानी है, जिससे आजादी आएगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भव हो जाएगा। पंजाब वैसे ही राजनीतिक तौर पर पिछड़ा हुआ माना जाता है। इसकी भी जिम्मेदारी युवा वर्ग पर ही है। आज वे देश के प्रति अपनी असीम श्रद्धा और शहीद यतीन्द्रनाथ दास के महान बलिदान से प्रेरणा लेकर यह सिद्ध कर दें कि स्वतन्त्रता के इस संघर्ष में वे दृढ़ता से टक्कर ले सकते हैं।
1930 में- असेम्बली बम काण्ड पर यह अपील भगतसिंह द्वारा जनवरी, 1930 में हाई कोर्ट में की गयी थी। इसी अपील में ही उनका यह प्रसिद्द वक्तव्य था : “पिस्तौल और बम इंकलाब नहीं लाते, बल्कि इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है और यही चीज थी, जिसे हम प्रकट करना चाहते थे।”
30 सितम्बर, 1930 को भगतसिंह के पिता सरदार किशन सिंह ने ट्रिब्यूनल को एक अर्जी देकर बचाव पेश करने के लिए अवसर की माँग की। सरदार किशनसिंह स्वयं देशभक्त थे और राष्ट्रीय आन्दोलन में जेल जाते रहते थे। उन्हें व कुछ अन्य देशभक्तों को लगता था कि शायद बचाव-पक्ष पेश कर भगतसिंह को फाँसी के फन्दे से बचाया जा सकता है, लेकिन भगतसिंह और उनके साथी बिल्कुल अलग नीति पर चल रहे थे। उनके अनुसार, ब्रिटिश सरकार बदला लेने की नीति पर चल रही है व न्याय सिर्फ ढकोसला है। किसी भी तरीके से उसे सजा देने से रोका नहीं जा सकता। उन्हें लगता था कि यदि इस मामले में कमजोरी दिखायी गयी तो जन-चेतना में अंकुरित हुआ क्रान्ति-बीज स्थिर नहीं हो पायेगा।
'मैं नास्तिक क्यों हूँ?'
यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था। यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण , मनुष्य के जन्म , मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता , उसके शोषण , दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है । यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है।
शहादत से पहले साथियों को अन्तिम पत्र
22 मार्च, 1931
साथियो,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ,कि मैं कैद होकर या पाबन्द होकर जीना नहीं चाहता।
मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है- इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता।
आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए। लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगतसिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी।
हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका। अगर स्वतन्त्र, जिंदा रह सकता तब शायद उन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता। इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँसी से बचे रहने का नहीं आया। मुझसे अधिक भाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इन्तजार है। कामना है कि यह और नजदीक हो जाए।
आपका साथी – भगतसिंह
क्या जूनून था मेरे शेर ए हिन्द में,ये पत्र जब कभी मै पड़ता हूँ तो दिल से आवाज आती है,भगत सिंह अमर रहे।
फाँसी पर लटकाए जाने से 3 दिन पूर्व- 20 मार्च, 1931 को- सरदार भगतसिंह तथा उनके सहयोगियों श्री राजगुरु एवमं श्री सुखदेव ने निम्नांकित पत्र के द्वारा सम्मिलित रूप से पंजाब के गवर्नर से माँग की थी की उन्हें युद्धबन्दी माना जाए तथा फाँसी पर लटकाए जाने के बजाय गोली से उड़ा दिया जाए। यह पत्र इन राष्ट्रवीरों की प्रतिभा, राजनीतिक मेधा, साहस एव शौर्य की अमरगाथा का एक परिचय था।
भगत सिंह का एक कोम के नाम एक संदेश था,उस में से कुछ आपके साथ साँझा करता हूँ ।
यह बात प्रसिद्ध ही है कि मैं आतंकवादी रहा हूँ, परन्तु मैं आतंकवादी नहीं हूँ। मैं एक क्रान्तिकारी हूँ, जिसके कुछ निश्चित विचार और निश्चित आदर्श हैं और जिसके सामने एक लम्बा कार्यक्रम है। मुझे यह दोष दिया जायेगा, जैसा कि लोग राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ को भी देते थे कि फाँसी की काल-कोठरी में पड़े रहने से मेरे विचारों में भी कोई परिवर्तन आ गया है। परन्तु ऐसी बात नहीं है। मेरे विचार अब भी वही हैं। मेरे हृदय में अब भी उतना ही और वैसा ही उत्साह है और वही लक्ष्य है जो जेल के बाहर था। पर मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि हम बम से कोई लाभ प्राप्त नहीं कर सकते। यह बात हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी के इतिहास से बहुत आसानी से मालूम हो जाती है। केवल बम फेंकना न सिर्फ़ व्यर्थ है, अपितु बहुत बार हानिकारक भी है। उसकी आवश्यकता किन्हीं ख़ास अवस्थाओं में ही पड़ा करती है। हमारा मुख्य लक्ष्य मज़दूरों और किसानों का संगठन होना चाहिए। सैनिक विभाग युद्ध-सामग्री को किसी ख़ास मौके के लिये केवल संग्रह करता रहे।
यदि हमारे नौजवान इसी प्रकार प्रयत्न करते जायेंगे, तब जाकर एक साल में स्वराज्य तो नहीं, किन्तु भारी कुर्बानी और त्याग की कठिन परीक्षा में से गुज़रने के बाद वे अवश्य ही विजयी होंगे।
इंकलाब-ज़िन्दाबाद!
(2 फरवरी,1931)
23 मार्च 1931 को भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई। फांसी पर जाने से पहले वे 'बिस्मिल' की जीवनी पढ़ रहे थे।
उनकी मृत्यु की ख़बर को लाहौर के दैनिक ट्रिब्यून तथा न्यूयॉर्क के एक पत्र डेली वर्कर ने छापा। इसके बाद भी कई मार्क्सवादी पत्रों में उन पर लेख छपे, पर चूँकि भारत में उन दिनों मार्क्सवादी पत्रों के आने पर प्रतिबन्ध लगा था इसलिए भारतीय बुद्धिजीवियों को इसकी ख़बर नहीं थी। देशभर में उनकी शहादत को याद किया गया।
मै ऐसी महान हस्ती को कितना भी बयां करू,कितना ही लिखू,मैं भगत सिंह को सारा बयां नहीं कर सकता,लेकिन मै ये ज़रूर मानता हूँ कि अगर भगत सिंह को अपने अन्दर हम सब ने समझ लिया तो हमारा मुल्क एक नई उमंग के साथ मिलकर आगे बढ़ेगा ।

बुधवार, 25 सितंबर 2019

मान्या - THE GANGSTER (PART-7)


रंजिश का पता चला,तो सब हैरान हो गए कि, जो हमला मान्या पर हुआ है। वह किसी और का काम नहीं उनके सामने जो कैंडिडेट खड़ा है,उसके ही कुछ लोग जो बाहर से आए हुए थे,जिन्हें मान्या के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था,उन्होंने ये कारनामा किया है दो-तीन दिन में यह सब स्पष्ट हो गया,थाने में रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई ।
अब फिर से वही सवाल, मान्य का दिमाग खराब, वही होना था जो हर्ष के साथ हुआ लेकिन अबकी बार लड़ाई हाथ मुखों की नहीं थी।अबकी बार हथियार की लड़ाई थी, जिसे लड़ना मान्या कि अहम को बचाना था,अब अगले दिन जब चुनाव से 1 दिन रह गया मान्या ने यह फैसला लिया कि वह चुनाव के तीन-चार दिन बाद इसका बदला लेगा ।
चुनाव का दिन आया सभी ने वोट डाले 70 परसेंट वोट पोल हुए । अब फैसले की घड़ी 3 दिन बाद जब रिजल्ट आया तो फैसला कपिल के हक में था, कपिल लगभग दो तिहाई वोटों से जीत चुका था।
सामने वाले लोगों की गाड़ियां कॉलेज के बाहर दंगा करने के लिए तैयार थी लेकिन मौके पर पुलिस प्रशासन की गाड़ियां और सिक्योरिटी को देखते हुए किसी ने दंगा करने की हिम्मत नहीं की ।
जशन की शाम थी, सभी अपने अपने तरीके से कपिल की जीत की खुशी मना रहे थे ।
लेकिन मान्या चुपचाप बैठा अपने अहम के बारे में सोच रहा था, उसने सभी से एक ही बात कही अब चुनाव हो चुके हैं,
लेकिन अब बात यह है कि अब उन लोगों से बदला कैसे लिया जाए ,
मान्या की प्लानिंग के आगे सब मिट्टी था, मान्या ने सोच लिया था कि बदला लेना है, उन्हीं के अंदाज में ।
चुनाव के अगले दिन जब रिजल्ट आ चुका था ,सामने वाले कैंडिडेट अपना आपा खो चुके थे, मान्या को पता था कि वह कुछ ना कुछ करेंगे और तभी वह उस्के लिए मौका होगा जब वो बदला ले सकता है,लेकिन हथियार से ।
मान्या ने अपने एक दोस्त से एक पिस्तौल वह कुछ कारतूस लिए, अब मान्या के पास अब एक पूरा भरा हुआ पिस्तौल था, जैसा सोचा वैसा हुआ, मान्या का साथी कपिल कॉलेज से अपने मकान पर जा रहा था तो उसकी गाड़ी पर किसी ने पत्थर से हमला कर दिया,
मान्या ने उन्हें देख लिया।
मान्या चुपके से पीछे से आया और लोगों की पहचान कर ली, लगभग 8 किलोमीटर पीछे-पीछे चलने के बाद जब उनकी गाड़ी एक जगह रुकी तो मान्या ने अपना पिस्तौल निकाला, और उनकी गाड़ी पर धड़ाधड़ फायरिंग चालू की।
गाड़ी में उस समय कोई नहीं था तो जान माल की हानि नहीं हुई लेकिन जो मंजर वहां पर लोगों ने देखा, उससे सब सहन गए और पुलिस को खबर दी।
मान्या जल्दी से वहां से निकला और अपने मकान पर जा पहुंचा और उसने पिस्तौल को गायब कर दिया । पुलिस को पता था यह सब मान्या का करा धरा है,लेकिन बिना सबूत वह मान्या को पकड़ नहीं सकते थे, अगले खबरों में छपा छात्रों की लड़ाई, हुई फायरिंग। तो सब ने अंदाजा लगा लिया कि यह सिर्फ मान्या ने ही किया है,मान्या की अहमियत और रुतबा वापस आ गया, लेकिन उस दिन कपिल अपने मकान पर नहीं पहुंचा आखिर कपिल कहां गया, यह बात अगली कहानी में बताऊंगा।
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शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

मान्या - THE GANGSTER (PART-6)


अब माहौल कुछ यूं था मान्या बड़े जोर शोर से तैयारी कर रहा था कि अब इलेक्शन आ रहे हैं...
और आज नामांकन है, अब क्या था नामांकन का दिन आया तो,
... अलग-अलग प्रत्याशी सामने आ गए ।
जब मान्या का प्रत्याशी,जिसका नाम कपिल था, नामांकन की तैयारी कर रहा था,नामांकन के लिए काफला तैयार हो रहा था,कपिल का नाम कम मान्या का काफिले में नाम ज्यादा था मान्या की वजह से उस काफले में गाड़ियों के संख्या कम से कम 200 के करीब थी पुलिस प्रशासन ने मान्या का नाम लेते ही रैली की इजाजत दे दी और मान्या ने पुलिस प्रशासन को धन्यवाद भी किया।
समय कुछ 10:00 बजे का था इतने में अलग-अलग प्रत्याशी अपना नाम नामांकन के लिए दे चुके थे।
अब 10:00 बजे मान्या और कपिल का काफिला कॉलेज की ओर बढ़ा,
अब जो भी उस काफिले को देखता बस नजर ठहरी जाती, मान्या जो एक कुख्यात बदमाश से साफ छवि की ओर बढ़ रहा था परंतु जिस किसी ने भी वह मान्या का काफिला देखा तो उसके मन में एक ही बात रह गई कि मान्या,
आज भी अपनी शख्सियत में दम रखता है काफिला कॉलेज की ओर बढ़ता चला गया नारे लग रहे थे कुछ कपिल तो बहुत कुछ मान्या की जय जयकार में लगे थे मान्या मानो इस दृश्य को देख बहुत खुश हुआ ऐसे ही लग रहा था कि प्रधान की का चुनाव कपिल नहीं मान्या लड़ रहा है कॉलेज के बाहर जब गाड़ियां पहुंची तो सभी छात्र देखकर दंग रह गए कि इतनी भीड़ सिर्फ और सिर्फ मान्या इकट्ठा कर सकता है लेकिन मान्या ने किसी को बुलाया नहीं था यह सब उसी उसकी पहचान थी कि लोग अपने आप मान्या की एक लफ्ज़ पर सैकड़ों गाड़ियां लेकर कपिल के काफिले पहुंच गए अब नामांकन के लिए गेट के अंदर दाखिला हुआ नामांकन के समय सिर्फ जो प्रत्याशी है वही कॉलेज के अंदर जा सकता है लेकिन मान्य मान्य को भी इजाजत मिली कि आप भी अंदर जा सकते हैं एक वीआईपी का सलूक मान्य के साथ हो रहा था अब नामांकन तो हो चुका।
माहौल भी बन गया,माहौल एक तरफा भी बन गया,अब शाम को जब जब मान्या अपने मकान पर जा रहा था ,उसके साथ रवि और उसके दो दोस्त उनकी गाड़ी में ही मकान पर जा रहे थे,
एक मोड़ मोड़ा कि आगे देखा कि कुछ लोग खड़े हैं ऐसा ही खड़े होंगे मैंने सोचा,लेकिन जो लोग वहां पर खड़े हुए थे उन्होंने तो कुछ और ही सोच रखा था।
जैसे ही हमारी गाड़ी उन लोगों से लगभग 50 मीटर की दूरी पर पहुंची तो इतने में,
गाड़ी के शीशे पर पत्थर आने लगे,
पत्थर तक ठीक था...
गाड़ी अनियंत्रित होकर पेड़ में जा लगी लेकिन अब जो बाद में हुआ वह हमने कभी सोचा भी नहीं था,हमने क्या यह तो मान्या ने भी नहीं सोचा था
कि उसे कभी हथियारों का सामना करना पड़ेगा कुछ लोग जिनके पास पिस्टल और बंदूकें थी हमारी गाड़ी की तरफ बढ़ने लगे ,मान्या को जोर-जोर से कहा की गाड़ी स्टार्ट करो और निकलो।
जैसे तैसे हमारे गाड़ी स्टार्ट हुई और वह जैसे ही हमारी गाड़ी के पास आने लगे इतने में मारी गाड़ी सराटे से वहां से निकल गई,
अब जब मकान पर पहुंचे तो इतना इतना दिमाग खराब हुआ कि ऐसा कौन कर सकता है हमारा किसी से कोई हथियारों वाला बैर नहीं है मान्या ने भी यही सोचा ऐसा कौन कर सकता है हमारा कोई दुश्मन भी नहीं है हर्ष जिस ने माफी मांग ली और वह दिल्ली रहने लगा है ,
और इलाके में शायद ही कोई मान्या पर हमला कर सकता है यह कौन थे चुनावी रंजिश मैं मिले कुछ लोग या हर्ष के लोग या पुलिस प्रशासन इसका जवाब अगली बार....
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गुरुवार, 19 सितंबर 2019

मान्या - THE GANGSTER (PART-5)


मिटी कहां गई ये सिर्फ मान्या को ही पता था,लेकिन मुझे भी तो पता है,चलो देखो अब आप सब कि मान्या ने पुलिस अधिकारी को जवाब दिया था कि उसे ज़मीन पर सोना ही अच्छा लगता है,लेकिन अब आपने एक लाईन पढ़नी चाहिए थी कि पानी के मटके....
एक जेल के कमरे मे पांच पानी के मटके होते है,जिन्हे भरने के लिये केदी कभी भी जेल के कमरे से बाहर आ सकता है,क्योकिं वो उनके दैनिक जीवन का हिस्सा है,अब मान्या के शरीर का धनी था,और उसका जेल में एक कुख्यात रुतबा था,दिन मे मान्या जेसे तेसे मटको के पानी को खाली कर,रात को उनमे मिटी भरता था, पांच मटको मे भरी मिटी कितनी होती है आपको पता होना चाहिए,एक 25 लीटर के पानी के मटके मे कम से कम 40 किलो मिटी आ सकती है,अब रात को मान्या सभी मटको मे मिटी भरता और सुबह 4 बजे उठकर अपनी शारीरिक फिटनेस को सहेजता था,उठते ही वो मटको को जेल के कुए मे गिरा देता,इतनी बड़ी जेल तो कुआ भी आम सी बात है बड़ा ही होगा,रोज थोड़ी थोड़ी मिटी से वो कुआ 4 साल मे नही भर सकता था,मिटी कुए में पानी मटको में,सिलसिला जारी रहा मिटी जाती रही,काम चलता रहा,अब ये कोन जाने की की इतने गहरे कुए मे निचे मिटी है या कुछ और,मान्या का यह प्लान भी सफल रहा ,अन्तिम दिन मे मान्या ने मटको को साफ पानी से भर के छोड़ा था,ताकि किसी को शक ना हो कि आज मान्या ने मटके क्यूँ नही भरे,गौर कोन करे,पानी का क्या कोई सोचेगा,ये भारत है।
अब ऐसे मिटी गायब हुई थी और एक शातिर युवा मान्या का दिमाग पुलिस के दिमाग से कई ज्यादा चलता था,
बेसब्री की हद होती है,मिटी कहां गई ये पता उन्हे आज भी नहीँ,गिरिराज आज भी फरार है,एक दिमाग और इतना तहलका,,ये सिर्फ मान्या ही कर सकता है,
मान्या, नाम ही काफी था इलाके में,साफ छवि या बदमास,ये लोगो की सोच मे था,
कलेक्टर ,मन्त्री,बड़े लोग ,बड़े अधिकारी एक ही नाम को पहचानते थे,मान्या।
थपड़ से मिटी तक मान्या के बहुत बड़ा किस्सा था,
जो शायद कभी न उजागर हो सकता था,अब एक नई चीज़ मान्या के कॉलेज मे आने वाली थी,जिसका नाम था स्टूडेंट ईलेक्शन,यानि छात्र संघ चुनाव ।
मान्या कॉलेज के पहले साल में,लेकिन रुतबा किसी प्रधान से कितना ज्यादा,
अब चुनाव की हलचल में सभी कैंडिडेट वोट के पास कम मान्या के पास उसके मकान के आगे ज्यादा खड़े नज़र आ रहे थे,हालात चुनाव नहीं मान्या था,मान्या चुनाव मे सहायता नहीँ करना चाहता था,लेकिन नाम का इस्तेमाल भी तो करना था,चुनाव के 5 दिन बाकी और नामकंंन आज थे,मान्या ने उमीदवार घोषित करना था,आज।
मान्या ने उमीदवार घोसणा की,अब क्या था,क्या माहौल हुआ ये अगली कहानी में ।
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